Tuesday, 27 January 2015

स्त्री अध्ययन विभाग द्वारा दो दिवसीय स्त्री आधृत फिल्म महोत्सव का आयोजन

8 मार्च को होने वाले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर स्त्री अध्ययन विभाग की ओर से दो दिवसीय फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया । जिसका विषय था - "महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और सिनेमाई रुख" । कार्यक्रम की शुरुवात दुनिया की उन महिलाओं के लिए कैंडल एवं मशाल जलाकर किया गया जो कभी न कभी किसी तरह की हिंसा का शिकार हुई, जिन्होनें संघर्ष किया, जो मारी गयी एवं जो संघर्ष कर रही हैं ।  
मशाल प्रज्वलित करते कुलपति एवं विभाग के संकाय सदस्य 
प्रथम सत्र की अध्‍यक्षता कर रहे माननीय कुलपति महोदय स्‍त्री अध्‍ययन विभाग को एक जीवंत विभाग बताते हुए 8 मार्च के विभिन्‍न आयामों पर अपने विचार रखा । उन्होनें अपने विचार रखते हुए यह प्रश्न उठाया कि स्त्रियां का पुरूषों के बराबर समानता ही क्‍योंउससे आगे की बात क्‍यों न करें? उन्‍होंने बच्चियों के कुपोषण और भेदभाव पर सवाल उठाते हुए कहा कि लोग आज भी बेटे और बेटियों के खानपान में भेदभाव करते हैं । साथ ही उन्‍होंने स्‍त्री अध्‍ययन विभाग के विभागाध्‍यक्ष महोदय प्रो. शंभु गुप्‍त द्वारा 12 वें प्‍लान के लिए प्रस्‍तावित 3 बड़े प्रोजेक्‍ट के लिए भी अपनी सहमती दी । कुलपति महोदय ने अध्‍ययन का महत्‍व बताते हुए कहा कि ज्ञान का न केवल, विस्‍तार करें बल्कि समाज से रिश्‍ता भी बनाएं । इस फिल्‍म महोत्‍सव की प्रासंगिकता और महत्‍व के बारे में उन्‍होंने कहा कि जीवन को उजागर क ने में सिनेमा का बड़ा योगदान है ।
कार्यक्रम के प्रथम सत्र के मुख्य अतिथि वक्ता श्री प्रवीण कुमार, सहायक प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली ने इस अवसर पर बोलते हुए मदर इंडिया, मिर्च मसाला, वाटर जैसी फिल्मों का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए इसके स्त्री पात्रों एवं उनके संघर्षों का विस्तार से उल्लेख किया ।
अपने विचार रखते अतिथि वक्ता श्री प्रवीण कुमार 
इस सत्र में दूसरी अतिथि वक्‍ता थीं अमरावती वि.वि
. की डॉ. निशा शेंडे । डॉ. निशा ने महिलाओं के साथ होनेवाली हिंसा के विभिन्‍न स्‍वरूपों पर चर्चा करते हुए कहा कि महिला आंदोलन की सबसे ज्‍़यादा ज़रूरत जहां है वहां है ही नहीं । उन्‍होंने अपने यहां काम करनेवाली एक महिला चंदाबाई के बारे में कहा कि कल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है तो उसने सवाल किया कि अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस क्‍या होता है ? इसलिए इस महिला दिवस को श्रमिक वर्ग तक पहुंचना ज़रूरी है ।
अपने विचार रखते अतिथि वक्ता डॉ. निशा शेण्डे 
इस सत्र का स्‍वागत भाषण स्‍त्री अध्‍ययन विभाग के विभागाध्‍यक्ष महोदय प्रो. शंभु गुप्‍त द्वारा दिया गया । अपने भाषण में उन्‍होंने वहां उपस्थित सभी विद्वदजनों, अतिथियों तथा छात्राओं-छात्रों का स्‍वागत करते हुए 8 मार्च की प्रासंगिकतास्‍त्री के प्रति सिनेमाई रूख़ को स्‍त्री अध्‍ययन जैसे विषय से जोड़ते हुए कहा कि स्‍त्री अध्‍ययन जितना अनुशासन है उतना यह व्‍यवहार भी है । उन्‍होंने स्‍त्री अध्‍ययन के संदर्भ में Field Work की महत्‍ता और जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि सारे निष्‍कर्ष और सिद्धांत वहीं से निकल कर आते हैं ।
संबोधित करते विभागाध्यक्ष प्रो. शंभु गुप्त 
स्‍त्री अध्‍ययन विभाग की तीन बड़ी परियोजनाओं के बारे में भी उन्‍होंने बताया जो 12 वें प्‍लान में प्रस्‍तावित है । 
इस सत्र में बोलते हुए नाट्यकला एवं फिल्‍म अध्‍ययन विभाग के विभागाध्‍यक्ष प्रो. सुरेश शर्मा ने स्‍त्री के प्रति हिंसा और सिनेमाई रूख़ पर मूक से लेकर सवाक़ फिल्‍मों का जिक्र किया। उन्‍होंने इस परंपरा की सबसे पहली फिल्‍म '‍हरिश्‍चंद्र' को बताया जब 'जिंदगी','देवदास','औरत','अछूत कन्‍या','मदर इंडिया','बंदिनी','अंकूर','मिर्च मसाला','गुलाब गैंग' इत्‍यादि फिल्‍मों में स्‍त्री के प्रति सिनेमाई रूख़ की चर्चा की । इस सत्र का प्रास्‍थानिक वक्‍तव्‍य स्‍त्री अध्‍ययन विभाग में प्रोफेसर सुश्री वासंती रमण ने दिया । 8 मार्च की प्रासंगिकता विषय पर बोलते हुए उन्‍होंने कहा कि पूरे विश्‍व में महिलाओं का संघर्ष किसी एक आयाम को लेकर नहीं रहा है, बल्कि समग्रता में उनका संघर्ष रहा है । उन्‍होंने 19 वीं और बीसवीं शताब्‍दी में दुनिया में विशेषकर पश्चिमी देशों में गैरबराबरी, शोषण के खिलाफ महिलाओं के आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि उन महिलाओं ने ब्रेड एण्‍ड रोजेज का नारा दिया । बेड एण्‍ड रोजेज' यानि हमारा संघर्ष सिर्फ रोटी के लिए नहीं है, हमारी लड़ाई ईज्‍ज़त, सम्‍मान की लड़ाई भी है, समानता की लड़ाई भी है । इस दिवस की प्रासंगिकता पर बोलते हुए उन्‍होंने कहा कि ज्ञान का मक़सद होता है परिवर्तन,बेहतर समाज की रचना और यह सिर्फ़ महिलाओं की जिम्‍मेदारी नहीं है और उनके साथ होनेवाली हिंसा, उनका संघर्ष सिर्फ महिलाओं का संघर्ष नहीं है । प्रो. वसंती रामन ने आह्वान किया संघर्ष हिंसा के खिलाफ, संघर्ष गैर- बराबरी के खिलाफ़, सामाजिक न्‍याय के पक्ष को मजबूत करने और नए समाज की रूपरेखा बनाने का । प्रथम उद्धाटन सत्र का धन्‍यवाद ज्ञापन किया स्‍त्री अध्‍ययन विभाग की सहायक प्रोफेसर अवंतिका शुक्‍ला ने । इस दिवस की महत्ता पर बोलते हुए उन्होनें आगाह किया कि 8 मार्च का दिन, विशेषकर श्रमिक महिलाओं और उनके संघर्ष से जुड़ा है । प्रथम सत्र का संचालन और इस पूरे कार्यक्रम का संयोजन स्‍त्री अध्‍ययन विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. सुप्रिया पाठक द्वारा किया गया । अपने संचालन और संयोजन में डॉ. सुप्रिया पाठक ने स्‍त्री के प्रति हिंसा और स्‍त्री के जीवन का सिनेमा से अंतर्संबधों का जिक्र किया ।प्रथम सत्र में एक पाकिस्‍तानी फिल्‍म दिखाई गई – सेविंग फेसेज/ पाकिस्‍तान में हर साल लगभग 100 केस एसिड हमले से पीडि़त महिलाओं के सामने आते हैं, जिनमें उनके घर वाले, विशेषकर पति शामिल होते हैं, उन्‍हीं महिलाओं की सत्‍यकथाओं की दास्‍तां, उनकी पीड़ा, उनका संघर्ष और उनमें से कुछ की जीत । इसी की कहानी है –‍ फिल्‍म- सेविंग फेसेज जिसके निर्देशक हैं डेनियल जंग
      इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए दूसरे सत्र में भी कुछ फिल्‍में दिखाई गईं । एक फिल्‍म थी – आई-एम। ओनीर द्वारा निर्देशित वर्ष 2011 में आई यह फिल्‍म सच्‍ची घटनाओं पर आधारित है । इस फि़ल्‍म में चार अलग-अलग कहानियां हैं । पहली कहानी की मुख्‍य पात्र एक स्‍त्री है जिसे नंदिता दास ने अभिनीत किया है । एक ऐसी स्‍त्री जो आधुनिक युग की नई चिकित्‍सा तकनीक से अकेले मां बनकर अकेले जीना चाहती है । इसके लिए वह किसी पुरूष का साथ नहीं चाहती और एक स्‍पर्म डोनर से स्‍पर्म लेती है । वह इन सारे सवालों को खारिज करती है कि वह अकेली कैसे मां बनेगी और इसका दायित्‍व उठाएगी। वह सिर्फ एक प्रश्‍न रखती है कि यदि मैं अकेली अपनी जिंदगी जी सकती हूं तो अकेली मां क्‍यों नहीं हो सकती । इस कडी में 'आई एम' की अगली फिल्‍म कश्‍मीर की पृष्‍ठ भूमि से संबंध रखता है। किस तरह संगीनों के साए में डरी-सहमी जिंदगियां हैं, टूटे- बिखरे, नष्‍ट किए गए घर और वहां से उजड़े हुए लोगों के साथ वहां रह रहे लोगों की त्रासदी हम फिल्‍म के कुछ दृश्‍यों में देखते हैं। दुनिया भर के नस्‍लों, जातियों, समुदायों के संघर्ष और हिंसा में लाखों-करोड़ों लोग मारे गए हैं और अब भी यह जारी है। इस हिंसा का सबसे क्रूरतम शिकार स्‍त्री होती है। चाहे किसी भी रूप में हो। इस फिल्‍म के मुख्‍य पात्रों को मनीषा कोईराला और जूही चावला ने अभिनीत किया है। एक स्‍त्री पात्र भयावह माहौल में जी रही है। एक अजीब सा भय, एक अजीब सा मातमी सन्‍नाटा छाया है और वहीं उसकी दोस्‍त आती है अपने बिखरे, खंडहर हुए घर को देखती है जिसे 20 साल पहले आधी रात में छोड़कर उसका परिवार शरणार्थी हो जाता है। उसकी आंखों में क्रोध है, घृणा है । दोनों सहोलियों की आंखों में और जुबान पर कई सवाल हैं कि ये भय किसलिए? ये मातम किसलिए ये हिंसा और नफरत का परिवेश किसलिए? क्‍या इसलिए कि हम अलग समुदायों, या नस्‍लों या जातियों से हैं? और यह कबतक चलता रहेगाइसी सत्र में वाणी सुब्रहमणियम द्वारा निर्मित एक वृत्तचित्र दिखाया गया जो स्‍त्री केन्द्रित था तथा इसमें स्‍त्री हिंसा से जुड़े सवाल उठाए गए हैं।
      इस अवसर पर वि.वि. की शोधार्थी मेधा आचार्या की प्रेंटिग की प्रदर्शनी भी की गई। इस कार्यक्रम के आयोजन में स्‍त्री अध्‍ययन विभाग के विभिन्‍न छात्र-छात्राओं ने भी भाग लिया- मनोज कुमार गुप्‍ता, साकेत बिहारी, डिप्‍पलआरती, शबाना रेणु कुमारी, कीर्ति, राजकुमार, विकास,सरिता, अतुल, राहुल, मनोज, राजलक्ष्‍मी, अस्मिता, आकांक्षा, श्‍याम प्रकाश, चित्रलेखा, मंजु, जयप्रकाश, दिपाली, शिल्‍पा, रेखा, अफसर हुसैन, शबाना। इस कार्यक्रम में विश्‍वविद्यालय के विभिन्‍न संकाय सदस्‍यों, विद्वतजन एवंम कार्मचारीगण भी उपस्थित थे । द्वितीय सत्र का संचालन स्‍त्री अध्‍ययन विभाग की छात्रा प्रीतिमाला सिंह द्वारा किया गया ।
आयोजन को सफल बनानेवाले विभाग के शोधार्थी एवं कर्मचारी 

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